Robbers are not Thieves......true....Vadragate,2G, Coalgate, Railgate, Bofors, Quattrochhi's release, helicopter deal......
Saturday, August 31, 2013
Wednesday, August 28, 2013
On Krishna Janmashtami
हो ऐसा कहीं न पिछड़ जायें, दुर्योधन बनकर रह जायें
भगवान् निकल जाएँ आकर,पछ्ताएं फिर क्या सर देकर ?
आंधी की तरह जो आता है, पानी की तरह बह जाता है
रुक सके प्रवाह न रोकने से, वो समझ न आये सोचने से
पहचान उसे तत्काल मनुज,कर उसका जय-जयकार मनुज
गोपेश्वर, गिरिधर, गोपी-रमण, वसुदेव-सुतम, देवकी नंदन
कृष्ण, केशव औ मधुसुदन, पार्थ-सारथी, चालक स्यंदन
रासबिहारी, कन्हैया, यादव, अच्युत, मुरारी और माधव
गोविन्द, मुरलीधर और श्याम, हो गए ये सभी काल नाम
पहचान उसे तू नए तन में, आँखें दे -दे अपने मन में
रूप नवीन धर आएगा, निश्चय न श्याम तन पायेगा
वो नए नाम से आएगा, यदुश्रेष्ठ न अब कहलायेगा
नामों के फेरे में मत पड़, मत झाँक अधिक तू इधर-उधर
पहचान उसे वो नाम न है, नामों से अधिक महान वो है
सबको जो एक समान प्रिय, सबसे जो सदा महान प्रिये
मत बाँध उसे तू नामों में, मत ढूंढ चुने इंसानों में
वो है अवश्य मिल जाएगा, छिपके न अधिक रह पायेगा
पुकारो जरा अंतर्मन से, अथवा दौड़ो सूनेपन से
हरि -हरि जब कोई कातर, विह्वल हो चिल्लाता है
धृतराष्ट्र सरीखा पापी भी तब कृपापात्र बन जाता है
विश्वास मनुज जब देता है, हरि अंक में अपने लेता है
(२३-२४, सितम्बर, १९८९ लिखित)
भगवान् निकल जाएँ आकर,पछ्ताएं फिर क्या सर देकर ?
आंधी की तरह जो आता है, पानी की तरह बह जाता है
रुक सके प्रवाह न रोकने से, वो समझ न आये सोचने से
पहचान उसे तत्काल मनुज,कर उसका जय-जयकार मनुज
गोपेश्वर, गिरिधर, गोपी-रमण, वसुदेव-सुतम, देवकी नंदन
कृष्ण, केशव औ मधुसुदन, पार्थ-सारथी, चालक स्यंदन
रासबिहारी, कन्हैया, यादव, अच्युत, मुरारी और माधव
गोविन्द, मुरलीधर और श्याम, हो गए ये सभी काल नाम
पहचान उसे तू नए तन में, आँखें दे -दे अपने मन में
रूप नवीन धर आएगा, निश्चय न श्याम तन पायेगा
वो नए नाम से आएगा, यदुश्रेष्ठ न अब कहलायेगा
नामों के फेरे में मत पड़, मत झाँक अधिक तू इधर-उधर
पहचान उसे वो नाम न है, नामों से अधिक महान वो है
सबको जो एक समान प्रिय, सबसे जो सदा महान प्रिये
मत बाँध उसे तू नामों में, मत ढूंढ चुने इंसानों में
वो है अवश्य मिल जाएगा, छिपके न अधिक रह पायेगा
पुकारो जरा अंतर्मन से, अथवा दौड़ो सूनेपन से
हरि -हरि जब कोई कातर, विह्वल हो चिल्लाता है
धृतराष्ट्र सरीखा पापी भी तब कृपापात्र बन जाता है
विश्वास मनुज जब देता है, हरि अंक में अपने लेता है
(२३-२४, सितम्बर, १९८९ लिखित)
Subscribe to:
Posts (Atom)